
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के संविधान में संशोधन से जुड़ी याचिका पर सुप्रीमकोर्ट को गुरुवार को सुनवाई करनी थी, लेकिन अब इस सुनवाई को 1 हफ्ते के लिए टाल दिया गया है। इस मामले पर अब अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। यह सुनवाई BCCI के पदाधिकारियों के कार्यकाल के संबंध में होनी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह को भी न्याय मित्र नियुक्त किया है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि पहले न्याय-मित्र को अब उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया है।
पीठ ने बीसीसीआई की याचिका पर सुनवाई की अगले तारीख 28 जुलाई तय करते हुए कहा, ”हम पीएस नरसिम्हा (अब न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा) की जगह वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह को न्याय-मित्र नियुक्त करेंगे।
इसलिए याचिका दायर की गई
बीसीसीआई के मौजूदा संविधान के मुताबिक लगातार छः साल तक सेवा देने के बाद अधिकारी अपने पद पर बने नहीं रह सकते हैं। इसके बाद उन्हें तीन वर्ष के कूलिंग ऑफ पीरियड पर जाना होगा। इसके बाद ही वह फिर से किसी राज्य संघ या भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में किसी पद पर आसीन हो सकते हैं। छह साल के कार्यकाल में राज्यसंघ और बीसीसीआई दोनों में वर्ष शामिल हैं।
BCCI चाहता है कि यह खत्म हो और इसलिए उसने सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। बीसीसीआई ने अपने प्रस्तावित संशोधन में पदाधिकारियों के लिए अनिवार्य ब्रेक टाइम को खत्म करने की मंजूरी मांगी है, जिससे गांगुली और जय शाह संबंधित राज्य क्रिकेट संघों में छह साल पूरे करने के बाद भी अपने पद पर बने रहेंगे।
गांगुली और जयशाह को पद पर बनाए रखने की कोशिश
इससे पहले, न्यायमूर्ति आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली एक समिति ने BCCI में सुधारात्मक कदमों की सिफारिश की थी, जिसे शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया था। सिफारिशों के अनुसार, राज्य क्रिकेटसंघ या बीसीसीआई स्तर के पदाधिकारियों को छह वर्ष के कार्यकाल के बाद तीन वर्ष के ब्रेक से गुजरना होगा। बीसीसीआई ने अपने प्रस्तावित संशोधन में अपने पदाधिकारियों के लिए ब्रेकटाइम को खत्म करने की मंजूरी मांगी है ताकि बीसीसीआई अध्यक्ष गांगुली एवं सचिव शाह संबंधित राज्य क्रिकेट संघों में 6साल पूरे करने के बाद भी अपने पद पर बने रह सकें।